बात उन दिनों की है जब हमारे गाँव में दो भाइयो में बटवारा हो रहा था /
मेरे पिता जी मध्यस्थ की भूमिका में थे/
बटवारे के समय यदि आधा आधा बटवारा होता तो एक दीवाल तोडना पड़ रहा था/
पिता जी ने बड़े भाई से कहा छोटे भाई के नाते आपको थोडा संतोष करते हुए छोटे भाई को दे देना चाहिए और इससे दीवाल भी नहीं तोड़नी पड़ेगी /
लेकिन !
बड़े भाई जो काफी सज्जन पुरुष है की बात सुनकर दीवाल तुडवाना पड़ा /
बड़े भाई ने कहा अब बटवारा हो ही रहा तो इतने नुकसान के बाद थोड़ा और नुकसान हम सह लेंगे /
क्या आप चाहते है की बटवारे के बाद भी इसी बात के लिए बाद हमारे बच्चे भी लड़ते रहें /
आज बटवारे के बाद भी उनके बच्चे लगभग एक परिवार की तरह रह रहें है, चूल्हे अलग हैं /
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
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जब बंटवारा हो ही रहा है तो एक बार इस तरह हो जाए कि आगे के लिए किसी के दिल में मरिड न रह जाए कि उसने ज्यादा ले लिया मेरे पास कम है । अत: पूरी तरह बराबरी होना ही बेहतर है ताकि बारबार बंटवारे का डंक अपना सर न उठा पाए । बडो की बात बडो में ही खत्म हो इसी में भलाई है । कम से कम बंटवारे का बोझ बच्चे न ढोएं । भले ही चूल्हे अलग हों लेकिन बच्चों का प्यार नहीं बंटना चाहिए ।
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